आधुनिक युग में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं
का रूप बहुत विस्तृत तथा बहुमुखी हो गया है। अनेक प्रकार के व्यापार व
उद्योग-धन्धों तथा व्यवसायों का जन्म हो रहा है। उद्योग-धन्धों व अन्य व्यावसायिक
क्रियाओं का उद्देश्य लाभार्जन होता है। व्यापारी या उद्योगपति के लिए यह आवश्यक
होता है कि उसे व्यापार की सफलता व असफलता या लाभ-हानि व आर्थिक स्थिति का ज्ञान
होना चाहिए। इसके लिए वह पुस्तपालन तथा लेखांकन (Book-keeping and Accountancy) की प्रविधियों का व्यापक उपयोग करता है। लेखांकन-पुस्तकें बनाकर व्यापारिक
संस्थाओं को अपनी आर्थिक स्थिति व लाभ-हानि की जानकारी प्राप्त होती है। यद्यपि
पुस्तपालन व लेखाकर्म व्यापारी के लिए अनिवार्य नहीं होते लेकिन वे इसके बिना अपना
कार्य सफलतापूर्वक संचालित नहीं कर सकते और उन्हें अपनी व्यापारिक क्रियाओं से
होने वाले लाभ या हानि की जानकारी भी नहीं मिल पाती।
लेखे रखने की क्रिया किसी न किसी रूप में
उस समय से विद्यमान है जब से व्यवसाय का जन्म हुआ है। एक बहुत छोटा व्यापारी
मस्तिष्क में याद्दाश्त का सहारा लेकर लेखा रख सकता है, दूसरा
उसे कागज पर लिखित रूप प्रदान कर सकता है। व्यवस्थित रूप से लेखा रखा जाये या
अव्यवस्थित रूप से, यह लेखांकन ही कहलायेगा। जैस व्यवसाय का
आकार बढ़ता गया और व्यवसाय की प्रकृति जटिल होती गई लेखांकन व्यवस्थित रूप लेने
लगा। इसमें तर्क वितर्क, कारण प्रभाव विश्लेषण के आधार पर
प्रतिपादित ठोस नियमों एवं सिद्धान्तों की नींव पड़ती गई एवं सामान्य लेखा-जोखा एक
कालान्तर में वृहत लेखाशास्त्र के रूप में हमारे सामने आया।
Introduction
to Accounting
In the modern era, the form of economic activities of man
has become very wide and multifaceted. Many types of trades and industries,
businesses and businesses are being born. The purpose of industries and other
business activities is profit making. It is necessary for a businessman or
industrialist that he should have knowledge of business success and failure or
profit and loss and economic condition. For this he makes extensive use of the
techniques of bookkeeping and accounting. By making accounting books, business
organizations get information about their economic condition and profit and
loss. Although bookkeeping and accountancy are not mandatory for the trader,
but they cannot conduct their business successfully without it and they do not
even get information about the profit or loss due to their business activities.
The act of keeping accounts has existed in one form or the other since the time the business was born. A very small trader can keep an account with the help of memory in the mind, another can give it in writing on paper. Whether the account is kept systematically or in an orderly manner, it will be called accounting itself. As the size of the business grew and the nature of the business became more complex, accounting began to take a systematic form. In this, the foundation of concrete rules and principles propounded on the basis of reasoning, cause-effect analysis was laid and general accounting came before us in the form of a comprehensive accountancy over a period of time.
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