Training of Employees | Hindi | Functions
| Human Resource Management
Contents:
1. प्रशिक्षण का अर्थ (Meaning of Training)
2. प्रशिक्षण की परिभाषाएं (Definitions of Training)
3. प्रशिक्षण नीति (Training Policy)
4. प्रशिक्षण के सिद्धान्त (Principles of Training)
5. महिलाओं के लिए
व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (Women’s Vocational Training Programme)
1. प्रशिक्षण का अर्थ (Meaning of Training):
प्रशिक्षण, सेविवर्गीय प्रबन्ध की आधारशिला
है । श्रम शक्ति के निर्माण के लिए, उचित भर्ती एवं चुनाव ही
पर्याप्त नहीं है, प्रभावी प्रशिक्षण योजना भी आवश्यक है ।
औद्योगिकीकरण के साथ ही तकनीकी एवं विज्ञान क्षेत्र में भी तेजी से विकास हुआ है ।
उत्पादन विधियाँ, प्रक्रियाएँ दिन-प्रतिदिन
विशिष्ट एवं जटिल बनती जा रही हैं । अत: श्रमिकों एवं प्रबन्धकों को इन परिवर्तनों
के अनुरूप कार्य करना पड़ता है जिसके लिए उन्हें प्रशिक्षण देना आवश्यक हो जाता है
। प्रशिक्षण केवल नए कर्मचारियों के लिए ही नहीं बल्कि पुराने कर्मचारियों के लिए
भी आवश्यक है ।
सेविवर्गीय प्रबन्धक
सभी विभागों के कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है । प्रशिक्षण एक
ऐसी प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती रहती है । कर्मचारी प्रशिक्षण वास्तव में मानवीय
संसाधन विकास (Human Resource
Development) का एक भाग है तथा यह मानवीय संसाधन प्रबन्ध (HRM)
का एक क्रियात्मक कार्य है ।
सभी संस्थाओं को
विभिन्न कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं अनुभवी कर्मचारियों की आवश्यकता होती है ।
यदि कर्मचारी का ज्ञान एवं कौशल वर्तमान जॉब की आवश्यकताओं के अनुरूप है तो
प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है । परन्तु यदि ऐसा नहीं है तो ज्ञान एवं कौशल में
वृद्धि की आवश्यकता है ।
इसके अतिरिक्त
कार्य/जॉब की जटिलता के बढ़ने से प्रशिक्षण की आवश्यकता भी बढ़ जाती है । प्रशिक्षण
का उद्देश्य कर्मचारियों को पर्याप्त मार्ग-दर्शन व निर्देश देना है जिससे वे अपने
कार्य को कुशलता से पूरा कर सके । प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यकुशलता में
वृद्धि तथा विकास होता है ।
एक विधिवत प्रशिक्षण
योजना, कार्य
में गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सुधार करती है, मशीनों को
सुरक्षित रखती है, लागत कम करती है, कर्मचारियों
की आय तथा उनके मनोबल में वृद्धि करती है तथा कम्पनी की नीतियों को प्रभावी ढंग से
लागू करवाती है ।
2. प्रशिक्षण की परिभाषाएं (Definition of
Training):
प्रशिक्षण वह प्रक्रिया
है जिसके द्वारा कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि तथा विकास होता है ।
प्रशिक्षण एक विशिष्ट ज्ञान है जिसकी आवश्यकता एक कार्य विशेष को करने के लिए होती
है । प्रशिक्षण को प्रबन्ध के विभिन्न विद्वानों द्वारा परिभाषित किया गया है ।
प्रशिक्षण की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
1. डेल
एस. बीच के अनुसार- “प्रशिक्षण एक ऐसी संगठित प्रक्रिया है
जिसके द्वारा लोग किसी निश्चित उद्देश्य के लिए ज्ञान और/अथवा कौशल सीखते है ।”
2. माइकल
जे. जूसियस के अनुसार- “प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके
द्वारा विशिष्ट कार्यों के निष्पादन हेतु कर्मचारियों की अभिवृत्तियों, निपुणताओं एवं योग्यताओं में वृद्धि की जाती है ।”
3. एडविन
बी. फिलिप्पो के शब्दों में- ”प्रशिक्षण किसी विशेष कार्य को
करने हेतु एक कर्मचारी के ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करने की क्रिया है ।”
4. डेल
योडर के अनुसार- “प्रशिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा
श्रम-शक्ति को उसके द्वारा किए जाने वाले विशेष कार्य के योग्य बनाया जाता है ।”
साधारण शब्दों में, कर्मचारी को एक विशेष कार्य
करने के लिए योग्यता प्रदान करना ही प्रशिक्षण है । इस प्रकार किसी विशिष्ट कार्य
को विशेष ढंग से निष्पादित/सम्मान करने की कला, ज्ञान एवं
कौशल ही प्रशिक्षण है । संगठन के सभी स्तरों पर कर्मचारियों की कार्य की गुणवत्ता
में सुधार करने के लिए, प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रमों की
आवश्यकता है ।
3. प्रशिक्षण नीति (Training Policy):
प्रशिक्षण की व्यवस्था
करना सेविवर्गीय विभाग (Personnel Deptt.) का उत्तरदायित्व है । उचित प्रशिक्षण नीति उच्च प्रबन्धकों (Top
Management) द्वारा तय की जाती है । इसका निर्धारण संस्था के
प्रशिक्षण उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए ।
प्रशिक्षण नीति का निर्धारण करने से पहले प्रबन्धकों को निम्न
तत्त्वों का अध्ययन करना चाहिए:
(i) प्रशिक्षण
की आवश्यकता क्यों है ?
(ii) प्रशिक्षण
से किस उद्देश्य की पूर्ति हो सकेगी ?
(iii) प्रशिक्षण कार्य का
उत्तरदायित्व किसका है ?
(iv) क्या
प्रशिक्षण औपचारिक होगा या अनौपचारिक ?
(v) प्रशिक्षण
की प्राथमिकताएँ (Priorities) क्या हैं ?
(vi) प्रशिक्षण
किस प्रकार का है- सामान्य अथवा विशिष्ट ?
(vii) प्रशिक्षण कब व कहाँ (When
and Where) दिया जाना चाहिए ?
(viii) प्रशिक्षण
के लिए किन साधनों का प्रयोग किया जायेगा ?
(ix) क्या
प्रशिक्षण के दौरान कर्मचारियों को कुछ छात्रवृति आदि दी जाएगी ?
(x) प्रशिक्षण
किस प्रकार से श्रम नीति के अनुकूल होगा ?
(xi) क्या
प्रशिक्षण भविष्य में भी आयोजि किया जाता रहेगा ?
प्रशिक्षण का आयोजन
पर्याप्त विश्लेषण एवं विचार करने के पश्चात् ही किया जाना चाहिए । अत: प्रशिक्षण
नीति का निर्धारण संस्था के उद्देश्यों व प्रशिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में
रखकर किया जाना चाहिए ।
एक प्रशिक्षण नीति में निम्न बातों का समावेश होना चाहिए:
(i) कर्मचारियों
के विकास के प्रति संस्था का दृष्टिकोण स्पष्ट करना ।
(ii) प्रशिक्षण
कार्यक्रम को बनाने एवं लागू करने के लिए मार्ग-दर्शन/पथ-प्रदर्शन करना ।
(iii) प्रशिक्षण
से सम्बन्धित सभी कर्मचारियों को जानकारी प्रदान करना ।
(iv) प्रशिक्षण
के प्रमुख क्षेत्रों के सम्बन्ध में संस्था की प्राथमिकताएँ स्पष्ट करना ।
(v) कर्मचारियों
को प्रशिक्षण के द्वारा अपनी उन्नति के उचित अवसर प्रदान करना ।
4. प्रशिक्षण के सिद्धान्त (Principles of
Training):
प्रशिक्षण एक निरन्तर
चलने वाली प्रक्रिया है इसमें काफी समय व धन का व्यय होता है । अत: यह आवश्यक है
कि प्रशिक्षण प्रोग्राम का आयोजन काफी सोच-विचार कर किया जाए ।
प्रशिक्षण प्रोग्राम
संस्था एवं प्रशिक्षणार्थी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए । एक सफल
प्रशिक्षण प्रोग्राम में प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का चुनाव
सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए । प्रशिक्षण के लिए उचित वातावरण होना भी आवश्यक है
।
मोरिस विटल्स (Morris Viteles) ने प्रशिक्षण के निम्न सिद्धान्तों का
वर्णन किया है:
1. एक
कर्मचारी को केवल सही कार्य-विधि बताई जानी चाहिए ।
2. कर्मचारियों
द्वारा सही कार्य-विधियों का अभ्यास किया जाना चाहिए ।
3. कार्य-विश्लेषण,
समय, गति अध्ययन के माध्यम से कार्य करने के
सर्वोतम ढंग का निर्धारण किया जाना चाहिए ।
4. गति
के सिद्धान्त का पालन किया जाना चाहिए ।
5. प्रशिक्षण
में गति (Speed) की अपेक्षा सहीपन (Accuracy) को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए ।
6. प्रशिक्षण
में अभ्यास के उद्देश्यों को महत्व दिया जाना चाहिए ।
7. वास्तविक
कार्य-दशाओं में दिया जाने वाला प्रशिक्षण, विधिवत्
प्रशिक्षण अथवा प्रशिक्षण कक्ष प्रशिक्षण से अधिक अच्छा होता है ।
8. वह
प्रशिक्षण जो कम समय में प्रदान किया जा सके अधिक कार्यकुशल होता है ।
9. नए
एवं पुराने सभी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।
The
National Industries Conference Board, U.S.A. द्वारा कुछ अन्य
सिद्धान्तों का इस प्रकार उल्लेख किया गया है:
1. प्रबन्धकों
को प्रशिक्षण के उद्देश्य व आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ।
2. प्रशिक्षणों
का प्रयोजन संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग करना होना चाहिए ।
3. प्रशिक्षण
का उद्देश्य प्रशिक्षणार्थी को संस्था में सभी स्तरों पर कार्य करने का अवसर
प्रदान करने तथा पर्याप्त ज्ञान एवं कौशल अर्जित करना होना चाहिए ।
4. प्रशिक्षण
की तकनीक एवं प्रक्रिया प्रशिक्षण के उद्देश्यों अथवा आवश्यकताओं के अनुरूप होनी
चाहिए ।
5. प्रशिक्षण
कार्य प्रत्येक प्रबन्धक का उत्तरदायित्व होना चाहिए ।
6. प्रशिक्षक
का यह उद्देश्य है कि वह रेखीय प्रबन्धकों (Line Managers) को
प्रशिक्षण की आवश्यकताओं, विकास नीतियों, प्रबन्धकीय व्यवस्थाओं के प्रति समय-समय पर आवश्यक सुझाव दें ।
7. प्रभावी
प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए यह आवश्यक है कि वह सीख (Learning) के परीक्षित सिद्धान्तों पर आधारित हो ।
8. जहाँ
तक सम्भव हो, प्रशिक्षण कार्यक्रम वास्तविक कार्य दशाओं में
संचालित किया जाना चाहिए ।
फिलिप्पो (Fillippo)
के अनुसार, एक अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम को
निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए:
1.
अभिप्रेरण का सिद्धान्त (Principle of Motivation):
प्रशिक्षण को
प्रभावपूर्ण बनाने के लिए यह आवश्यक है कि वह प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण
प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित कर सके । प्रशिक्षणार्थी को यह पता होना चाहिए कि
प्रशिक्षण से उसकी कौन सी आवश्यकताओं की पूर्ति होगी, जिससे वह पूरी लगन से प्रशिक्षण
प्राप्त करें ।
जब प्रशिक्षणार्थी यह
समझते हैं कि प्रशिक्षण से उन्हें अधिक आय, प्रशंसा या पदोन्नति मिलेगी तो वे ज्यादा रुचि से
प्रशिक्षण प्रान्त करेंगे ।
2.
अभ्यास का सिद्धान्त (Principle of Practice):
यह सिद्धान्त
कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए अभ्यास एवं पुनरावृत्ति (Repetition) पर जोर देता है ।
प्रशिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है प्रशिक्षणार्थियों (Trainees)
से पूरा अभ्यास कराया जाए ।
3.
व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धान्त (Principle of Individual
Differences):
साधारणतया
प्रशिक्षणार्थियों को सामूहिक प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रशिक्षण प्रदान करते समय
प्रशिक्षणार्थियों में विद्यमान भिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिए । ये भिन्नताएँ
शारीरिक, मानसिक
एवं भौतिक हो सकती हैं ।
इसके अतिरिक्त, प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी की
प्रशिक्षण सम्बन्धी आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं । अत: प्रशिक्षण उनकी आवश्यकताओं
एवं अभिवृत्तियों को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए ।
4.
प्रगति का सिद्धान्त (Principle of Progress):
प्रशिक्षण प्रभावपूर्ण
तभी बनता है जब प्रशिक्षक इस बात का ध्यान रखे कि प्रशिक्षणार्थी ने किन क्षेत्रों
में कितनी प्रगति कर ली है और कितनी प्रगति और करनी है ।
5.
पूर्ण बनाम आंशिक प्रशिक्षण का सिद्धान्त (Principle of
Whole V/s Part Training):
प्रशिक्षण दो प्रकार से
दिया जा सकता है- पूर्ण प्रशिक्षण (Whole Training) अथवा आंशिक प्रशिक्षण (Part
Training) । यह कार्य की प्रकृति एवं प्रशिक्षणार्थी की योग्यता पर
निर्भर करता है । यदि काम जटिल हो तो सारे काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दिया
जाता है और अलग-अलग प्रशिक्षण दिया जाता है । यह अधिक प्रभावपूर्ण रहता है ।
6.
सम्बलन का सिद्धान्त (Principle of Reinforcement):
प्रशिक्षण को
प्रभावपूर्ण बनाने के लिए यह आवश्यक है कि संस्था में वेतन-वृद्धि, पदोन्नति आदि की उचित व्यवस्था
हो, जिससे प्रशिक्षणार्थी को प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए
आकर्षित किया जा सके ।
5. महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (Women’s
Vocational Training Programme):
महिला कर्मचारियों को
प्रशिक्षित करने एवं उन्हें-प्रशिक्षण के समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से
रोजगार तथा प्रशिक्षण महानिर्देशालय (Director General of Employment and Training) ने 1977
में महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ किया ।
इस कार्यक्रम के
अन्तर्गत, महिलाओं
के प्रशिक्षण के लिए एक ”महिलाओं के लिए राष्ट्रीय
व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान” (National Vocational Training Institute
for Women i.e., NVTI) की स्थापना नोयड़ा (Noida) में की गई है ।
इसके अतिरिक्त, महिलाओं के लिए क्षेत्रीय व्यावसायिक
प्रशिक्षण केन्द्रों (Regional Vocational Training Institute for Women
i.e., RVTI) की भी स्थापना की गई है । इन क्षेत्रीय प्रशिक्षण
केन्द्रों की संख्या 10 है । केरल में एक और क्षेत्रीय
प्रशिक्षण केन्द्र को अनुमति दे दी गई है ।
मूल प्रशिक्षण तथा उच्च
प्रशिक्षण के कार्यक्रम (National Council for
Vocational Training) (NCVT) द्वारा संचालित किए जाते हैं । जनवरी 1997
तक इस केन्द्रीय संस्थान की अनुमोदित स्थान-संख्या (Seating
Capacity) 1592 थी और इसके अन्तर्गत, 14,770 प्रशिक्षणार्थियों
को प्रशिक्षण दिया गया ।
इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री
एवं बच्चों के विकास की योजना (The Scheme of Development of Women and
Children in Rural Areas i.e., DWCRA) के अन्तर्गत अब तक 30 लाख से अधिक ग्रामीण स्त्रियों को लाभ हुआ ।
इस कार्यक्रम का देश के
सभी जिलों में विस्तार किया गया है । इस योजना का उद्देश्य महिलाओं का आय-स्तर
बढ़ाना एवं उनका सामाजिक विकास करना है । राज्य स्तर पर भी महिलाओं को व्यावसायिक
प्रशिक्षण देने के लिए 438 औद्योगिक
प्रशिक्षण संस्थाओं (महिला विंग) की स्थापना की गई है ।
इनकी स्थान-क्षमता 34,978 सीट है । महिलाओं के
प्रशिक्षण के लिए नियमित प्रशिक्षण के अतिरिक्त अल्प-अवधि प्रशिक्षण भी विभिन्न
संस्थाओं द्वारा आयोजित किए जाते हैं ।
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